तर गए तो ठीक, वरना बन जाएंगे इतिहास
पुराने ढर्रे पर चलना होगा घातक
नागपुर टुडे.
कांग्रेस की स्थानीय राजनीति में खुद को पुनर्स्थापित करने के लिए जिले के पूर्व पालकमंत्री सतीश चतुर्वेदी के लिए यह चुनाव आखिरी मौका माना जा रहा है. पिछले विधानसभा चुनाव में भारी मतों से पराजित होने के कारण वे पूर्णतः ‘राजनीतिक कोमा’ में चले गए थे. आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर अब वे पुनः सक्रिय हुए हैं.
पिछड़े इलाके का प्रतिनिधित्व
ज्ञात हो कि सतीश चतुर्वेदी 5 टर्म तक लगातार पूर्व नागपुर जैसे पिछड़े इलाके का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं. इस दौरान वे राज्य के मंत्री रहे. जिले के पालकमंत्री भी बनाए गए. राज्य मंत्रिमंडल में वे वरिष्ठ तो थे, लेकिन कभी उन्हें प्रभावी मंत्रालय का जिम्मा नहीं सौंपा गया. इस दौरान चतुर्वेदी ने पूर्व नागपुर का पहले की तुलना में काफी विकास किया. उस समय ऐसा भी प्रतीत होता था कि क्या चतुर्वेदी जिले की बजाय कहीं पूर्व नागपुर के ही पालकमंत्री तो नहीं हैं ?
सक्रिय राजनीति से दूरी बनाई
चतुर्वेदी का शहर की राजनीति में भी 5 साल पूर्व तक काफी प्रभाव था. उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं को शहर कांग्रेस का पदाधिकारी और नगरसेवक तक बनवाया. कई कार्यकर्ताओं को ऊंचे ओहदों तक पहुंचाया. इस दौरान उनके कई कार्यकर्ता अन्य गुटों के संपर्क में आए. तामझाम देखी और मौकापरस्तों की तरह लाभ के पदों पर बैठ अपना हित साधने लगे. उसके बाद काम निकलते ही चतुर्वेदी को छोड़ गंतव्य की ओर चलते बने. इसी के चलते वर्षों से चतुर्वेदी के निष्ठावान कार्यकर्ता रहे लोगों में नाराज़गी पैदा होने लगी. इसका असर यह हुआ कि गत विधानसभा चुनाव में विरोधियों की लम्बी फ़ौज ने विपक्ष के नए-नवेले उम्मीदवार को भारी मतों से जीत दिलवा दी. इस चुनाव परिणाम को देख चतुर्वेदी ने खुद को सक्रिय राजनीति से दूर कर लिया और लगभग 3 साल तक दूर ही रहे.
… और सक्रिय राजनीति में लौटे
पूर्व नागपुर के वर्तमान विधायक से जब जनता और कभी उनके अपने रहे कार्यकर्ताओं का भ्रम टूटा तो सभी चतुर्वेदी के दर पर मत्था टेकने लौटने लगे. उनके यहां जमघट लगना शुरू हो गया. अब वे कह रहे हैं- जैसे भी थे बाबू, देर से ही सही काम तो करवा ही देते थे. इससे चतुर्वेदी के हौसले को बल मिला और वे लोकसभा चुनाव के पहले पूर्णतः सक्रिय राजनीति में लौट आए.
तर जाएंगे या इतिहास का हिस्सा बन जाएंगे
आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर चतुर्वेदी भी मानते हैं कि उनकी राजनीतिक राह पहले की तरह पेचीदगी भरी ही है. प्रथम चरण में उन्हें पूर्व में अपनाए गए फॉर्मूले के आधार पर टिकट लाना होगा. इस बाधा को पार करने के बाद दूसरे चरण में
फिर पार्टी की आंतरिक गुटबाजी, जातिगत समीकरण को साधना होगा. और अंत में पिछले चुनाव में मिली 35000 से हार के अंतर को पाटना होगा. इसके साथ ही हाल के लोकसभा चुनाव में सिर्फ पूर्व नागपुर से भाजपा को मिले 80-90 हज़ार मतों की काट निकालना उनके लिए टेढ़ी खीर साबित होगा. अगर चतुर्वेदी पुनः पुराने ढर्रे पर चले तो, जनता-जनार्दन का मानना है कि यह विधानसभा चुनाव उनके लिए आखिरी मौका साबित होगा. इसमें सफलता मिली तो वे तर जाएंगे, वरना इतिहास में जमा होने से कोई उन्हें रोक नहीं पाएगा.