Quantcast
Channel: Nagpur Latest News – Updates, Headlines, and Breaking News
Viewing all articles
Browse latest Browse all 31486

कलम के सिपाहियों,..अब तो जागो!

$
0
0

Nagpur Today : Nagpur News

किशोरचंद्र वांगखेम!

नहीं जानते हैं?मैं बताता हूँ ।

उत्तर-पूर्व मणिपुरके इम्फाल में सक्रीय पेशेवर पत्रकार हैं। NSA अर्थात् राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत गिरफ्तार कर सरकार ने इन्हें जेल भेज दिया है।रासुका के अपराधी हैं तो जरुर इनसे राष्ट्रीय सुरक्षा को कोई खतरा पैदा हुआ होगा?जिज्ञासा स्वाभाविक है।

लेकिन नहीं!उनका अपराध है कि उन्होंने एक ऐसा वीडियो अपलोड किया जिसमें वे मुख्यमंत्री और राज्य सरकार के खिलाफ बोलते नज़र आ रहे हैं ।

मुख्यमंत्री के लिए अपशब्द का इस्तेमाल भी कर रहे हैं ।वे इस बात की आलोचना कर रहे हैं कि झांसी की रानी की जयंती राज्य सरकार क्यों मना रही है?मुख्यमंत्री के उस वक्तव्य को चुनौती दे रहे हैं जिसमें जिसमें झांसी की रानी को भारत को एक करने का श्रेय दिया था और स्वतंत्रता संग्राम में झांसी की रानी के योगदान की चर्चा की थी ।

किशोरचंद्र का कहना है कि झांसी की रानी का मणिपुर से कभी कोई संबंध नहीं रहा।जयंती के आयोजन से मणिपुर के स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों का अपमान होगा ।

मुख्यमंत्री को केंद्र सरकार की कठपुतली बताते हुए किशोरचंद्र आरोप लगाते हैं कि जयंती का आयोजन सिर्फ़ केंद्र सरकार के निर्देश पर किया जा रहा है
अब सवाल कि इन बातों से राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा कैसे?

किशोर चंद्र जब पहली बार 20नवंबर को गिरफ्तार किये गये थे,तब 26नवंबर को चीफ जुडिसियल मजिस्ट्रेट ने जमानत पर रिहा करते हुए अपने आदेश में साफ-साफ कहा था कि ,”…the comments made in the video didn’t appear to ‘create enmity between different groups of people, community, sections’ nor did it appear to be attempting to bring ‘hatred, contempt, dissatisfaction’ against the government of India or that of the state.

परंतु,वाह !सत्ता के नशे में मदमस्त राज्य सरकार ने जमानत पर रिहा होने के 24घंटे के अंदर किशोर चंद्र को दोबारा,इस बार राष्ट्रीय सुरक्षा कानून,NSA,के तहत,गिरफ्तार कर लिया ।

अब फैसला हमें करना है कि हम लोकतांत्रिक भारत देश के नागरिक हैं या हिटलरशाही ?

आश्चर्य कि मणिपुर सरकार के इस घोर अलोकतांत्रिक कदम के खिलाफ राष्ट्रीय मीडिया ‘मौन ‘है !उनकेमुँह से ओह-उफ तक नहीं सुना जा रहा।किस भय,किस दबाव में मौन है मीडिया का बड़ा वर्ग?

ध्यान रहे,ये हिटलरशाही कारर्वाई सुदूर उत्तर-पूर्व के एक पत्रकार के खिलाफ नहीं है ।कालांतर में किसी को भी लपेटे में लिया जा सकता है ।पिछ्ले दिनों अनेक पत्रकारों की हत्याएं हो चुकी हैं ।रासुका में गिरफ़्तारी का ये खेल एक ‘परीक्षा’ भी हो सकती है ।सत्ता ऐसे खेल खेलती रही है ।

1982के बिहार प्रेस बिल की याद करें ।तब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने विश्वस्त बिहार के मुख्यमंत्री डॉ जगन्नाथ मिश्र के माध्यम से ‘प्रेस ‘को लेकर देश का नब्ज़ जानने की कोशिश की थी ।राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक विरोध को देखते हुए अन्ततः बिल को वापस लेने को सरकार मजबूर हुई थी ।

फिर,1988में प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने भी ‘प्रेस’ पर सरकारी शिकंजा कसने के उद्देश्य से ‘प्रेस अधिनियम ‘लाया था ।लेकिन,एकजुट प्रेस बिरादरी के विरोध के सामने सरकार को नतमस्तक होना पड़ा ।प्रेस अधिनियम वापस हुआ ।

इनके पूर्व आपातकाल के दौरान ‘प्रेस सेंसरशिप’ का काला अध्याय इतिहास के पन्नों में दर्ज है।लेकिन,तब घोषित आपातकाल था।आज?कोई आपातकाल नहीं!,बावजूद इसके बिरादरी नतमस्तक,साष्टांग क्यों?सत्ता के तलवे चाटती क्यों नज़र आ रही है?

कारण/कारणों के पड़ताल की जरुरत नहीं ।नग्न रुप में सबकुछ सामने है ।इसलिए,सिर्फ चेतावनी दोहराई जा सकती है कि अब भी चेत जाएं!मीडिया के खिलाफ “सरकारी नंगई” का एकजुट हो विरोध करें।ये दोहराना ही होगा कि मीडिया के सत्ता के सामने साष्टांग का अर्थ होगा-लोकतंत्र की इतिश्री!अत: निद्रा तोड़ बिरादरी के अस्तित्व के पक्ष में अंगड़ाई लें !अन्यथा,,’किशोरचंद्रों’ की पंक्ति की संभावित लंबाई को नापना कठिन हो जायेगा।

कलम के सिपाहियों,..अब तो जागो!


Viewing all articles
Browse latest Browse all 31486

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>